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दीपावली के बाद क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा

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दीपावली के दूसरे दिन उत्तर और मध्य भारत में गोवर्धन पूजा का प्रचलन है। इस दिन को अन्नकूट महोत्सव भी कहते हैं। इस दिन गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर पूजा की जाती है। पुराणों के मुताबिक द्वापर युग में सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण के कहने पर ही गोवर्धन पर्वत की पूजा की गई थी । आइये जानते हैं कि गोवर्धन पूजा के पीछे क्या संदेश छुपा है।

प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होने का देता है संदेश

गोवर्धन पूजा में गोबर के गोवर्धन पर्वत बनाकर उनकी पूजा की जाती है। नजरिये से देखा जाए तो इस परंपरा के पीछे प्रकृति पूजा का संदेश छुपा है क्योंकि प्रकृति ही हमें जीवन देती है और हम जब तक जीवित रहते हैं तब-तक प्रकृति से ही सब कुछ ग्रहण करते हैं। इसीलिए यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञ रहने की सीख देता है।

गायों की सेवा का है महत्व

इस दिन घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। गाय के गोबर से इसलिए क्योंकि पुराणों में इसे पवित्र माना जाता है। ग्रंथों में बताया गया है कि गाय के गोबर में भी लक्ष्मी का निवास होता है। इसलिए सुख और समृद्धि के लिए भी गोवर्धन पूजा करने की परंपरा है। इस दिन गायों की सेवा का महत्व है। गोवर्धन पूजा कुछ जगहों पर सुबह की जाती है, वहीं कुछ हिस्सों में इस पूजा के लिए प्रदोष काल को शुभ माना गया है।

पोषण युक्त भोजन ग्रहण करने की सीख देता है अन्नकूट

अन्नकूट: नए अनाज का लगता है भोग इस दिन भगवान के निमित्त छप्पन भोग बनाया जाता है। कहते हैं कि अन्नकूट महोत्सव मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। अन्नकूट महोत्सव इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन नए अनाज की शुरुआत भगवान को भोग लगाकर की जाती है। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनकी पूजा की जाती है और गौमाता को मिठाई खिलाकर आरती उतारते हैं। इसके बाद परिक्रमा भी करते हैं।