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उतार चढाव से भरा रहा रतन टाटा का जीवन, गढ़े नये कीर्तिमान, जानिये कुछ दिलचस्प बातें

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 दिग्गज उद्योगपति और टाटा संस के चेयरमैन एमेरिटस, रतन टाटा का बुधवार को निधन हो गया.  वह 86 वर्ष के थे. मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. वे काफी समय से अवस्थ चल रहे थे. टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने एक बयान में रतन टाटा के निधन की पुष्टि करते हुए उन्हें अपना ‘दोस्त, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत’ बताया. रतन टाटा 28 दिसंबर 2012 को टाटा संस के चेयरमैन के रूप में रिटायर हुए थे.

रतन टाटा के बारे में:

साल 1937 में जन्मे रतन टाटा का पालन-पोषण 1948 में उनके माता-पिता के अलग होने के बाद उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया था.

रतन टाटा साल 1962 में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से बी.आर्क की डिग्री प्राप्त की थी. 1962 के अंत में भारत लौटने से पहले उन्होंने लॉस एंजिल्स में जोन्स और इमन्स के साथ कुछ समय काम किया. 

2008 में भारत सरकार ने उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, प्रदान किया था. वह 28 दिसंबर 2012 को टाटा संस के चेयरमैन के रूप में रिटायर हुए थे.

.जब रतन टाटा ने संभाली कमान:

रतन टाटा की उल्लेखनीय यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने साल 1991 में ऑटोमोबाइल से लेकर स्टील तक के विभिन्न उद्योगों में फैले टाटा समूह की बागडोर संभाली. साल 1996 में उन्होंने टाटा टेली-सर्विसेज की स्थापना की और 2004 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) को सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध करवाया, जो कंपनी के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ.

रतन टाटा के नेतृत्व में ऐतिहासिक अधिग्रहण:

  1. टेटली (2000): टाटा टी द्वारा 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर में ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण किया गया. यह भारतीय कंपनी का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण था.
  2. कोरस (2007): टाटा स्टील ने 6.2 बिलियन पाउंड में यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी कोरस का अधिग्रहण किया. यह भारतीय स्टील उद्योग का अब तक का सबसे बड़ा सौदा था.
  3. जगुआर लैंड रोवर (2008): टाटा मोटर्स ने 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में प्रतिष्ठित ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण किया। यह सौदा टाटा मोटर्स के लिए एक बड़ी सफलता साबित हुआ और कंपनी को वैश्विक ऑटोमोबाइल बाजार में मजबूती दी.

टाटा ग्रुप की कमान किसके हाथ?

रतन टाटा की सेवानिवृत्ति के बाद, टाटा ग्रुप की कमान एन चंद्रशेखरन (Natarajan Chandrasekaran) के हाथों में है. उन्होंने 2017 में टाटा संस के चेयरमैन का पदभार संभाला था. एन चंद्रशेखरन इससे पहले टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर रह चुके है

बचपन में ही अलग हो गए माता-पिता

उन्होंने बताया था कि उनका बचपन खुशहाल था, लेकिन जैसे-जैसे वह और उनके भाई बड़े होते गए, उन्हें अपने माता-पिता के तलाक के कारण व्यक्तिगत परेशानी का सामना करना पड़ा, जो उन दिनों आज की तरह आम नहीं था। बता दें कि जब रतन टाटा छोटे थे, तभी उनके माता-पिता, नवल टाटा और सूनी एक-दूसरे अलग हो गए थे और इसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई ने किया था। वहीं, अपनी लव लाइफ (Ratan Tata Love Story) पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि मैं एलए (लॉस एंजिल्स) में था, जहां मुझे प्यार हुआ और लगभग शादी भी हो गई थी।

दादी के लिए किया वापस लौटने का फैसला

हालांकि, इसी बीच उन्होंने अस्थायी तौर पर वापस भारत जाने का फैसला किया था, क्योंकि वह अपनी दादी से दूर थे, जिनकी तबीयत लगभग 7 साल से ठीक नहीं थी। इसलिए वह दादी से मिलने वापस भारत आ गए। हालांकि, इस दौरान 1962 के भारत-चीन युद्ध चल रहा है, जिसकी वजह से उनकी पार्टनर के माता-पिता को उनका भारत आना मंजूर नहीं था और बस इस वजह से रतन जी का वह रिश्ता टूट गया। रतन टाटा ने बताया कि वह चार बार शादी के करीब पहुंचे, लेकिन हर बार वह डर या किसी न किसी कारण से पीछे हट गए।

पिता के साथ रहा मतभेद

इस दौरान उन्होंने यह भी बताया अपने पिता के साथ उनके अक्सर मतभेद रहा करते थे। उन्होंने बताया कि वह अमेरिका में कॉलेज जाना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने यूके में जाने पर जोर दिया। मैं एक आर्टिकेक्ट बनना चाहता था, उन्होंने मुझसे इंजीनियर बनने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि उनकी दादी ने हमेशा उन्हें यह सिखाया कि बोलने का साहस नरम और सम्मानजनक भी हो सकता है।