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दतिया में विराजी हैं शत्रुहंता और राजसत्ता की देवी मां पीतांबरा, देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु

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 मां पीतांबरा की नगरी दतिया देश में एक अलग पहचान रखती है। राजसत्ता की अधिष्ठात्री देवी मां बगुलामुखी यहां स्थित पीतांबरा पीठ में विराजमान हैं। देश विदेश के साधक यहां जप तप साधना के लिए डेरा जमाए रहते हैं। तंत्र मंत्र के लिए सिद्धपीठ पीतांबरा मंदिर पर पूरे बारह माह ही श्रद्धालुओं के आने का क्रम रहता है। धार्मिक मान्यता है कि पीतांबरा माई के दर्शन मात्र से ही शत्रु और कष्टों का विनाश हो जाता है। इसके अलावा कई अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं भी इस शक्तिपीठ से जुड़ी हुई हैं।

  1. दतिया में विराजी हैं राजसत्ता की देवी मां पीतांबरा
  2. देश विदेश से मनोकामना लेकर आते हैं लाखों श्रद्धालु
  3. मां पीतांबरा को शत्रुहंता की देवी भी माना जाता है

यहां महाभारत कालीन वनखंडेश्वर महादेव और दस महाविद्याओं में से एक माई धूमावती भी विराजित हैं। मां का यह रूप वैध्वय होने के कारण सुहागिन महिलाओं को इसके दर्शन निषिद्ध हैं। हर शनिवार यहां धूमावती माई के दर्शनों के लिए देश के कोने-कोने से काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मां को नमकीन वस्तुओं का भोग अर्पित किया जाता है।

श्रद्घा, आस्था और विश्वास लेकर देश के विभिन्न राज्यों और विदेश से दर्शनार्थी दतिया नगर में विराजित मां पीतांबरा मंदिर पर पहुंचते हैं। वर्ष में पड़ने वाली चार नवरात्रि में तो यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। मां पीतांबरा मूर्ति की स्थापना वर्ष 1935 में स्वामी जी महाराज ने की थी। इसी शक्ति पीठ में धूमावती माई की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा वर्ष 1978 में की गई थी।

शत्रुहंता और राजसत्ता की देवी

दस महाविद्याओं में से दो पीतांबरा माई और धूमावती माई के इस पीठ में एक साथ विराजमान होने से यहां की मान्यता और सिद्धता काफी प्रसिद्ध है। मां पीतांबरा को शत्रुहंता और राजसत्ता की देवी माना जाता है। मान्यता है कि इस शक्ति पीठ पर जो भी दर्शन करने आता है उसके शत्रु, दुख और कष्टों का निवारण माई के दर्शन पूजन मात्र से हो जाता है। यही कारण है कि यहां राजनेता, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियां और उद्योगपति सहित देशभर के गणमान्य लोग दर्शन के लिए वर्षभर आते रहते हैं।

तिया पर्यटन और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां हर गली में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर होने के कारण इस नगरी को लघु वृंदावन के नाम से भी ख्याति प्राप्त है। शहर से तीन किमी की दूरी पर ही पंचमकवि की टोरिया है। यहां तारापीठ और भगवान भैरव का स्थान है। दतिया से आठ से दस किमी की दूरी पर प्रसिद्ध जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिर है। यहां पहाड़ी पर जैन तीर्थंकरों के मंदिर बने हुए हैं।

भारत-चीन युद्ध के दौरान पीठ पर हुआ था राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान

दतिया के पीतांबरा पीठ पर वर्षभर आयोजन होते हैं। इनमें वर्ष में आने वाली चारों नवरात्रि के दौरान दुर्गा शत चंडी जाप के साथ राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान प्रमुख हैं। इसके बारे में पीतांबरा मंदिर पीठ के प्रशासक बीपी पाराशर बताते हैं कि अनुष्ठान के दौरान शतचंडी पाठ आदि किए जाते हैं। पीठ परिसर में वह यज्ञशाला भी बनी है।

जहां भारत चीन युद्ध के समय स्वामी जी महाराज द्वारा देशभर के विद्वान पंडितों के माध्यम से राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान कराया गया था। मां पीतांबरा को शत्रुहंता भी माना जाता है। इसीके चलते वर्ष 1962 में बैद्यनाथ कंपनी के चेयरमैन पंडित रामनारायण शर्मा के सहयोग से भारत-चीन युद्ध के दौरान यहां पर राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान 76 पंडितों द्वारा करीब 34 दिन किया गया था।

ताया जाता है कि जैसे ही पीतांबरा पीठ मंदिर में यज्ञ प्रारंभ हुआ वैसे ही चीन की सेना ने पीछे हटना शुरू कर दिया था। वर्तमान में इस शक्ति पीठ पर राजसत्ता पाने के इच्छुक नेता, फिल्म अभिनेता सहित बड़े उद्योगपति व न्यायपालिका के बड़े पदों पर आसीन अधिकारी यहां पहुंचकर शतचंडी अनुष्ठान कराते हैं। इसके अलावा पीतांबरा पीठ मंदिर ट्रस्ट द्वारा परशुराम जयंती, भैरव जयंती, गीता जयंती, स्वामी महाराज का आगम और निर्वाण पर्व भी यहां मनाया जाता है, इसमें धार्मिक आयोजन किए जाते हैं।

इसके अलावा गुरु पूर्णिमा पर अनेक कार्यक्रम होते हैं और इसमें भाग लेने वाले देश विदेश से यहां पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। पीतांबरा पीठ पर बसंत पंचमी के अवसर पर संगीत समारोह का आयोजन होता है। जिसमें देश के ख्यातनाम शास्त्रीय संगीतकार व गायक अपनी प्रस्तुतियां मां पीतांबरा और स्वामी महाराज को समर्पित करते हैं।