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जानिए क्यों मनाई जाती है होली

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हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है। इस दिन पूरा देश गुलाल-अबीर और रंग में सराबोर रहता है। हर कोई एक-दूसरे पर प्यार के रंग बरसाते हैं। होली के रंगों को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। कृष्ण नगरी मथुरा में धूमधाम तरीके से होली का पर्व मनाया जाता है। कृष्ण-राधा के प्रेम में रंगने के लिए और ब्रज की होली के साक्षी बनने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। होली में भगवान नारायण और महादेव की भी पूजा का विधान है। तो आइए आज जानते हैं कि होली मनाने की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे कौन-कौन सी प्रचलित कथाएं हैं।  

भगवान शिव की कथा

भगवान शिव जब कैलाश पर तपस्या में लीन थे, तब कामदेव ने शिव की तपस्या भंग कर दी थी।कामदेव ने शिव पर पुष्पों की वर्षा की थी. शिव ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आंख खोली और कामदेव को भस्म कर दिया।कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव की पूजा की और बताया कि कामदेव निर्दोष थे। भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया और उनका नाम बदलकर मानसिज रख दिया। इस खुशी में भोज का आयोजन हुआ और सभी देवी-देवताओं ने हिस्सा लिया।  इसी खुशी के उत्सव को बाद में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली के रूप में मनाया जाने लगा

भक्त प्रह्लाद की कथा 

पुराणों के अनुसार, भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को अपने बेटे की यह भक्ति बिल्कुल रास नहीं आती थी। एक बार उन्होंने अपनी बहन होलिका के साथ प्रह्लाद को मारने की साजिश रची। दरअसल, होलिका को ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। यही वस्त्र पहनकर होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका आग में जल गई। बुराई पर अच्छाई की जीत और शक्ति पर भक्ति की विजय के रूप में होली का पर्व मनाया जाता है।

राधा-कृष्ण से जुड़ी कथा

मान्यताओं के मुताबिक, भगवान कृष्ण का रंग सांवला था और राधा रानी गोरी थीं। इस बात को लेकर अक्सर कान्हा अपनी मईया यशोदा से शिकायत करते थे कि वह क्यों नहीं गोरे हैं। इसके बाद एक दिन यशोदा जी ने भगवान कृष्ण को कहा कि जो तुम्हारा रंग है उसी रंग को राधा के चेहरे पर भी लगा दो फिर तुम दोनों का रंग एक जैसा हो जाएगा। फिर क्या था कृष्ण अपनी मित्र मंडली ग्वालों के साथ राधा को रंगने के लिए उनके पास पहुंच गए। कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ मिलकर राधा और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया। कहते हैं कि तब से ही रंग वाली होली की परंपरा शुरू हुई। आज भी मथुरा में भव्य और धूमधाम तरीके से होली खेली जाती है।